इज़राइल-ईरान संघर्ष: तनाव, हमले और वैश्विक प्रभाव
14 जून 2025 को इज़राइल और ईरान के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया, जब इज़राइल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हमले शुरू किए। इस संघर्ष ने न केवल मध्य पूर्व, बल्कि पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। यह ब्लॉगपोस्ट इज़राइल-ईरान संघर्ष के हर पहलू को मानवीय दृष्टिकोण से कवर करता है, जिसमें तनाव का इतिहास, हाल की घटनाएं, और इसके वैश्विक प्रभाव शामिल हैं।
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इज़राइल-ईरान संघर्ष का इतिहास: क्यों हैं दोनों देश आमने-सामने?
इज़राइल और ईरान के बीच तनाव की जड़ें दशकों पुरानी हैं। इज़राइल का मानना है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम उसके अस्तित्व के लिए खतरा है। इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू ने बार-बार दावा किया है कि ईरान के पास नौ परमाणु हथियार बनाने के लिए पर्याप्त उच्च-संवर्धित यूरेनियम है। दूसरी ओर, ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, जैसे बिजली उत्पादन। लेकिन अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने ईरान के दावों पर संदेह जताया है, क्योंकि ईरान ने तीन अघोषित परमाणु स्थलों पर मानव-निर्मित यूरेनियम कणों की जांच में सहयोग नहीं किया।
दोनों देशों के बीच दुश्मनी केवल परमाणु कार्यक्रम तक सीमित नहीं है। ईरान, हिजबुल्लाह और सीरिया जैसे अपने सहयोगियों के माध्यम से इज़राइल के खिलाफ छद्म युद्ध (proxy war) का समर्थन करता रहा है। वहीं, इज़राइल ने ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों और सैन्य कमांडरों को निशाना बनाने के लिए मोसाद जैसे खुफिया ऑपरेशनों का सहारा लिया है। यह आपसी अविश्वास और क्षेत्रीय प्रभुत्व की लड़ाई इस संघर्ष को और जटिल बनाती है।
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हाल की घटनाएं: ऑपरेशन राइजिंग लायन और ईरान की जवाबी कार्रवाई
13 जून 2025 को इज़राइल ने "ऑपरेशन राइजिंग लायन" शुरू किया, जिसमें उसने ईरान के नतांज़ और इस्फहान में परमाणु सुविधाओं और सैन्य ठिकानों पर 150 से अधिक हवाई हमले किए। इन हमलों में ईरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के कमांडर होसैन सलामी, सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ मोहम्मद बघेरी, और छह प्रमुख परमाणु वैज्ञानिकों सहित 70 से अधिक लोग मारे गए। नतांज़ की मुख्य परमाणु संवर्धन सुविधा का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह नष्ट हो गया, जिससे रासायनिक और रेडियोलॉजिकल प्रदूषण की आशंका बढ़ गई।
ईरान ने जवाबी कार्रवाई में 200 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन हमले किए, जो तेल अवीव और यरुशलम सहित इज़राइल के कई शहरों में गिरे। इन हमलों में कम से कम तीन इज़राइली नागरिक मारे गए और दर्जनों घायल हुए। तेल अवीव के रमात गान में एक मिसाइल हमले में एक महिला की मौत हो गई, जबकि रिशोन लेज़ियोन में एक बच्ची को मलबे से बचाया गया। इज़राइल की आयरन डोम मिसाइल रक्षा प्रणाली ने कई मिसाइलों को रोका, लेकिन कुछ मिसाइलें इसे भेदने में सफल रहीं, जिससे तेल अवीव में धुएं के गुबार देखे गए।
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नेतन्याहू की रणनीति और मोसाद की भूमिका
इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू ने इन हमलों को "इज़राइल के अस्तित्व के लिए आवश्यक" बताया और ईरान के लोगों से अपने "दमनकारी शासन" के खिलाफ खड़े होने की अपील की। उन्होंने दावा किया कि यह ऑपरेशन ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम और बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता को नष्ट करने के लिए शुरू किया गया है। नेतन्याहू ने कहा, "हमने ईरान के परमाणु संवर्धन और हथियारीकरण कार्यक्रम को निशाना बनाया। यह अभी शुरुआत है।"
इज़राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने इस ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रिपोर्ट्स के अनुसार, मोसाद ने पहले से ही ईरान के भीतर विस्फोटक ड्रोन और प्रेसिजन हथियार तैनात किए थे, जिनका उपयोग हवाई रक्षा प्रणालियों और मिसाइल लॉन्चरों को नष्ट करने के लिए किया गया। मोसाद ने कुछ ड्रोन हमलों का वीडियो भी जारी किया, जो इसकी सटीकता और गुप्त ऑपरेशनों की क्षमता को दर्शाता है।
वैश्विक प्रतिक्रिया और विश्व युद्ध की आशंका
इस संघर्ष ने वैश्विक समुदाय को चिंता में डाल दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इज़राइल के हमलों का समर्थन किया, लेकिन साथ ही ईरान को परमाणु समझौते के लिए बातचीत की मेज पर आने की सलाह दी। ट्रंप ने कहा, "हमने ईरान को बख्शने की बहुत कोशिश की, लेकिन अब भी समय है कि वे एक समझौता करें।" हालांकि, ईरान ने 15 जून को ओमान में होने वाली परमाणु वार्ता को "बेकार" बताते हुए रद्द कर दिया।
ईरान ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने इज़राइल का समर्थन किया, तो उनके क्षेत्रीय सैन्य ठिकाने निशाना बन सकते हैं। कतर जैसे कुछ अरब देशों ने इज़राइल के हमलों की निंदा की और इसे ईरान की संप्रभुता का उल्लंघन बताया। IAEA के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने परमाणु सुविधाओं पर हमलों के खिलाफ चेतावनी दी और सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की।
कई विश्लेषकों को डर है कि यह संघर्ष तीसरे विश्व युद्ध का रूप ले सकता है, खासकर अगर अन्य देश इसमें शामिल हो गए। यरुशलम और तेल अवीव में सायरन की आवाज़ और बंकरों में छिपते लोग इस तनाव की भयावहता को दर्शाते हैं। एक ब्रिटिश नागरिक ने यरुशलम को "भूतों का शहर" बताया, जहां सड़कें सुनसान हो गई हैं और लोग डर के साये में जी रहे हैं।
भारत और अन्य देशों की भूमिका
भारत ने अपने नागरिकों के लिए एक एडवाइज़री जारी की है, जिसमें इज़राइल और ईरान की यात्रा से बचने की सलाह दी गई है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने क्षेत्र में शांति और संयम की अपील की है। कुछ भारतीय समाचार चैनलों, जैसे रिपब्लिक भारत, ने इसे "महायुद्ध" की संज्ञा दी है, जो दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है।
इराक और सद्दाम हुसैन का ज़िक्र
कुछ लोग इस संघर्ष की तुलना 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध से कर रहे हैं, जब सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में इराक ने ईरान पर हमला किया था। हालांकि, वर्तमान स्थिति उससे कहीं अधिक जटिल है, क्योंकि इसमें परमाणु हथियारों का खतरा और वैश्विक शक्तियों की भागीदारी शामिल है।
तेल अवीव और यरुशलम: युद्ध के बीच ज़िंदगी
तेल अवीव, जो इज़राइल का वाणिज्यिक केंद्र है, और यरुशलम, जो इसकी राजधानी है, दोनों इस संघर्ष के केंद्र में हैं। तेल अवीव में मिसाइल हमलों के बाद धुएं के गुबार और सायरन की आवाज़ ने लोगों को बंकरों में शरण लेने के लिए मजबूर किया। यरुशलम में सड़कों पर सन्नाटा पसरा है, और लोग डर के माहौल में जी रहे हैं।
भविष्य की आशंकाएं और उम्मीदें
नेतन्याहू की रणनीति का एक लक्ष्य ईरान में शासन परिवर्तन को प्रोत्साहित करना हो सकता है। उन्होंने ईरान के लोगों से अपील की कि वे अपने "अत्याचारी शासन" के खिलाफ खड़े हों। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह रणनीति उलटी पड़ सकती है, क्योंकि ईरान में कई लोग अपने देश की संप्रभुता पर हमले को लेकर एकजुट हो सकते हैं।
इस बीच, तेल की कीमतों में उछाल और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान की आशंका बढ़ रही है। अगर यह संघर्ष लंबा खिंचता है, तो इसका असर न केवल मध्य पूर्व, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
निष्कर्ष: शांति की राह
यह संघर्ष न केवल इज़राइल और ईरान, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है। परमाणु हथियारों का खतरा, क्षेत्रीय अस्थिरता, और वैश्विक शक्तियों की भागीदारी इसे बेहद संवेदनशील बनाती है। हमें उम्मीद है कि दोनों देश संयम बरतेंगे और कूटनीति के रास्ते पर लौटेंगे। यरुशलम और तेल अवीव की सड़कों पर फिर से रौनक लौटे, और तेहरान में लोग बिना डर के जी सकें।
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